नई दिल्ली,सर्दियां शुरू हो चुकी हैं। आने वाले कुछ ही दिनों में पूरा उत्तर भारत घने कोहरे की चादर से ढक जाया करेगा। चूंकि कोहरे की अवधि लंबी होती है। शाम ढलते ही यह छाने लगता है और दूसरे दिन सूरज चढ़ने के साथ इसका काम तमाम होता है, लिहाजा बाहर निकलना लोगों की विवशता होती है। कई बार इस दौरान बहुत कम दृश्यता होती है। इसमें जरा सी चूक हमें अपने जीवन की कीमत देकर चुकानी पड़ सकती है। सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रलय के आंकड़े बताते हैं कि कोहरे के दौरान सड़क दुर्घटनाओं और उनमें हताहत होने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। यह स्थिति चिंताजनक है। इसे बदलना ही होगा।
वृद्धि: 2014 में कोहरे के चलते हुई सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 5,886 थी। महज दो साल बाद ही ये आंकड़ा 11 हजार को पार गया। ये वृद्धि करीब सौ फीसद के आसपास बैठती है।
दृश्यता कम क्यों
पानी की बूंदों से बने घने बादल जब वायुमंडल में कोहरे के रूप में फैले रहते हैं तो ये बूंदें चारों दिशाओं में प्रकाश का परावर्तन करती हैं जो सीधे हमारी आंखों पर पड़ता है। लिहाजा साफ दिन की तुलना में कोहरे की स्थिति में हम बहुत दूर तक नहीं देख पाते हैं।
हर साल ऐसी स्थिति
हर साल उत्तर भारत का मैदानी इलाका घने कोहरे से घिर जाता है। मौसम विज्ञानी इसके लिए नॉक्टरनल जेट मौसमी परिघटना को उत्तरदायी ठहराते हैं। नॉक्टरनल जेट मौसमी परिस्थिति तब बनती है जब वायुमंडल के निचले हिस्से में रात के समय तेज वायु का प्रवाह होता है और आसमान साफ होता है। ऐसे में जब धरती के पास का तापमान रात में गिरता है तो धरती के ऊपर ओस की बूंदे संघनित होकर जम जाती हैं। इसे ही कोहरा कहते हैं। सामान्यतौर पर कोहरा बनने के लिए तीन कारक जिम्मेदार होते हैं। उच्च आद्र्रता, कम तापमान और हल्की हवा। हालांकि नॉक्टरनल जेट परिघटना में हवाएं तेज चलती हैं और आद्र्रता का स्तर बहुत कम होता है। ये सभी कारक मिलकर उत्तर भारत के मैदानी हिस्से