नई दिल्ली, अमेरिका में नए राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है। कई वजहों से अमेरिकी इतिहास में इस चुनाव प्रक्रिया को याद रखा जाएगा। भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी अलग अहमियत रहेगी। यूं तो हर अमेरिकी चुनाव में किसी न किसी पड़ाव पर भारतीय मूल की चर्चा होती रही है। लेकिन इस बार के चुनाव में पहले दिन से भारत का जिक्र रहा है। भारतीय रंग उस दिन से ही चढ़ना शुरू हो गया था कि जब सितंबर, 2019 में हयूस्टन में भारतवंशियों की तरफ से आयोजित 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक दूसरे का हाथ पकड़कर चले थे। भारतीय मूल के लिए अमेरिकी मतदाता से भरे स्टेडियम में 'अबकी बार ट्रंप सरकार' का नारा भी लगा था। वह नारा तो सच होता नहीं दिख रहा है लेकिन पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दोनों पार्टियों की तरफ से भारत से जुड़े मुद्दे उठाये जाते रहे।
भारत का हितैषी व दूसरे को भारत विरोधी साबित करने की हुई कोशिश
राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों ने अपने आपको भारतीय हितों के ज्यादा करीब दिखाने की पूरी कोशिश की। अब अगर कुछ अप्रत्याशित नहीं हुआ तो डेमोक्रेट पार्टी की तरफ से अमेरिका की नई उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस बनेंगी। भारतीय मां और जमैकन पिता की पुत्री हैरिस अमेरिकी चुनाव में भारत के सबसे गहरे रंग को पेश करेंगी।
भारतीय मूल के सांसदों का जीतना महत्वपूर्ण
इनके अलावा अमेरिकी राजनीति में समोसा काकस के नाम से प्रचलित भारतीय मूल के चार सांसद (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में) डॉ. अमित बेरा, प्रमिला जयपाल, रो खन्ना और राजा कृष्णमूर्ति का दोबारा चुनाव जीतना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। हैरिस और उक्त चारों सांसद अपने भारतीय मूल को लेकर बेहद मुखर रहते हैं और इसे अमेरिकी राजनीति में एक शक्ति के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। जानकार मान रहे हैं कि अमेरिका में भारतीय मूल के वोटरों की संख्या नहीं बल्कि भारतीय जिस तरह से अपने अपने क्षेत्र में लीडर के तौर पर स्थापित हो रहे हैं, उसकी वजह से वह अमेरिकी राजनीति में जगह बना रहे हैं।