किये संकुचित अखंड रश्मियाँ,

 "संध्याकाल"



किये संकुचित अखंड रश्मियाँ, 

                रवि चले पश्चिम् की ओर l

रवि ने उठाया डेरा जब, 

          तमुल् तम की आ गयीं डोलियाँl

नभ शासक बना शशि तब, 

           सज गयीं ताराओं की लाड़ियाँ l

झींगुर ने झंकार मचाई, 

             अति दयनीय हुयीं कलियाँ l

चक्रवाक हुए शोकाकुल, 

            श्लिष्ट हुई वियोग की घड़ियाँ l

अटल प्रकृति भी हो गयी स्तब्ध, 

             सूनी हो गयीं सारी गालियाँ l

अर्ध प्रकृति हुई अति प्रमुदित, 

          अर्ध के हिस्से शोक की घड़ियाँl

रवि चलें पश्चिम की ओर, 

        किये संकुचित अखंड रश्मियाँ l


रश्मि पाण्डेय


ARP मलवाँ बिंदकी फतेहपुर

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