"उपहार "
तुमसे जग मैने पाया जो,
मैं उससे बेहतर दे जाऊं ।
जो कुछ भी तुमने किया मुझे,
मैं उससे बेहतर कर जाऊं ।
तुमसे मुझको न वफ़ा मिली,
बाधायें तो हर दफ़ा मिली ।
हर नूर नयन का लेकरके ,
मुस्कान ए अधर को सज़ा मिली।
तुमको जग मुझमे भाया जो,
पावन भावों को दे जाऊं ।
सम्मान पे मेरा हक है जो,
वो तुमने मुझको दिया नहीं ।
तुमने जो मान है दिया नहीं,
सम्मान तुम्हें मैं दे जाऊं ।
मै तुमसे बेहतर दे जाऊं,
मै तुमसे बेहतर कर जाऊं ।
अपनी त्रुटियों पर भी तुमने,
अट्टहास है सदा किया ।
डाला बेशर्मी का पर्दा,
आंखों का पानी मार दिया ।
रच छल प्रपञ्च है दम्भ किया,
अच्छे बनने का ढोंग किया ।
लेकरके कड़वाहट मन में,
हो साधुवाद पाखण्ड किया।
तुमने जग मुझको दिया न जो,
ऐसा उपहार मैं दे जाऊं ।
मै तुमसे बेहतर कर जाऊं,
मैं तुमसे बेहतर दे जाऊं ।
रश्मि पाण्डेय,
बिन्दकी , फतेहपुर