"संयोग-वियोग"
देख सखी री ! साजन आये,
दूर विरह करि मन लजिआये l
कछु इत ताके कछु उत ताके,
कछु मन अतिहिं मनोहर लागे l
नयनन ते कछु कछु ऋषियाय ,
मनही ते ह्वै मन अति हर्षाय l
कुहू - कुहू कोयल की बानी,
कछु भावे कछु अंतर आनी l
आग विरह मन जब झुलसावे,
पिय बानी स्मृति अति आवे l
शीतल चाँद उगलता आग,
पिय बिन काली लगती रात l
देख सखी ! मनुहारी गाये,
बिन प्रियतम के कछु न भाये l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर