"मैं स्त्री हूँ"
चलो ज्ञान के दीप को ले चलें,
प्रकृति की वो दुनिया बनाते चलेंl
नहीं हो दिखावा वहाँ पर कोई,
वो औरत की गरिमा बताते चलें l
नहीं मुक्त होकरके रहना हमें,
स्नेह की बेड़ियों में है बंधना हमेंl
एक ज़ंजीर अपनी हम देंगे तुम्हें,
दूर रहकर भी एहसास देना हमें l
मैं पिता, भाई, बेटे, पति में बंधू,
इस संसार की मैं प्रकृति ही बनूँ l
मुक्त होकर के पहचान मेरी नहीं,
मैं नारी हूँ कोई परिंदा नहीं l
मेरा घोसला सारे रिश्तों में है,
मैं आधार ही ज़िंदगी की बनूँ l
मैं बेटी , बहन, माँ, पत्नी बनूँ,
है चाहत यही कि इनमें बंधू l
मुक्त होकर के पहचान मेरी नहीं,
मैं नारी हूँ कोई परिंदा नहीं l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर