"सजल- मोती"
चलो कुछ मन की कहते हैं,
चलो कुछ मन की सुनते है
ये भावों के सजल मोती,
पिरो माला को बुनते हैं l
तुम्हारी भी कुछ सुनते हैं,
हमारी भी कुछ कहते हैं l
ये पन्ने जीवन के पढ़कर,
चलो कुछ दुःख- सुख कहते हैंl
कि पढ़कर भावनाओं को,
' ह्रदय -गह्वर' को भरते हैंl
बड़ी संजीदगी के संग,
अधर मुस्कान भरते हैं l
कहे बिन नेत्र भाव से,
चलो सब कुछ कह देते हैं l
तुम्हारी भी कुछ सुनते हैं,
हमारी भी कुछ कहते हैं l
ह्रदय के तार कर झंकृत,
नये सप्तक को गढ़ते हैं l
विकल ये वेदना मन की,
नये रूपों में मढ़ते हैं l
तुम्हारी तुमसे सुनते हैं,
हमारी भी कुछ कहते हैं l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी ,फतेहपुर