"
"कविता"
तुम उतरकर रूह में,
हर अश्क में बनकर बसे l
ज़िंदगी के रूप में
तुम ज़िंदगी बनकर हँसे l
तुम कमल की लालिमा,
लेकर बसे हो कपोल में l
ले रूप अधरों का तुम्हीं,
मुस्कान बनकर हो सजे l
गहराइयों के साथ में,
गहराइयाँ देकर मुझे l
देकर चमक रवि-रश्मि का,
अम्बर में चमकाया मुझे l
दे झनक झरने से तुमने,
हिय तार को झंकृत किया l
दे दे के भावुकता मुझे ,
कविता बना तुमने दिया l
भाव की गहराई भी,
हिय में बसा तुमने दिया l
लो आज मैं भी बन गयी,
जो रूप तुमने दे दिया l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी फतेहपुर