" हमारी पहचान हिंदी"

 "  हमारी पहचान हिंदी"




सुना है मन की बात बताने को, 

                    हिंदी का सृजन हुआ l


बृज में कान्हां की वंशी से, 

                 मन गोपी सम मगन हुआ l


कहीं सुरों की ताल- तलैया, 

                 नाचे राधा कृष्ण -कन्हैया l 

 

कहीं राम के चरित का मानस, 

                   सिद्धांतों में सीता मैया l


कहीं प्रकृति में छल -छल छलके, 

                  नदियों में सम गंगा मैया l


मन के भावों में विस्तारित, 

                सारे रसों में है ये समाहित l


कहीं जनक की सुता दुलारी, 

                   भावों में पल्लवित हुआ l


कहीं पे गोवर्धन के जैसे, 

                  कान्हां के संनिकट हुआ l


ऐसी ही पहचान दिलाने को, 

                      हिंदी का सृजन हुआ l


सुना है मन की बात बताने को, 

                      हिंदी का सृजन हुआ l





रश्मि पाण्डेय

बिंदकी, फतेहपुर

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