" गह्वरता "
मैं लिखूँ भला क्या कविता
?
जब सागर भाव समाहित हूँ l
अब मौन भला क्या समझोगे?
जब शब्दों को ही न समझा l
मैं आँधी को भी थाम चलूँ,
सामर्थ्य ह्रदय वो रखती हूँ l
तुम मुझको क्या पढ़ पाओगे,
मैं भाव ह्रदय जो रखती हूँ l
भौतिकता से दूर हूँ मैं,
पाखंड मुझे नहीं जचता l
मैं जीवन को जीवन समझूँ,
तप जीवन में मेरे रहता l
हर काम सरल समझा मैंने,
जब तक दुनिया को न समझा l
सच्चाई तब समझ सकी,
जब दुनियादारी को समझा l
साहित्य ; साधना है मेरी,
पाखंड है दूर जहाँ रहता l
अंतर्मन की संतुष्टि से ही,
भाव मेरे जीवन रहता l
मैं सफल हूँ असफलता में भी,
यह बात नहीं तुम समझोगे l
सिद्धांत मेरे जीवन के ये,
अब समझ नहीं तुम पाओगे l
दुनिया को परिवर्तित कर दूँ,
सात्विकता वो रखती हूँ l
तुम सात्विकता क्या समझोगे?
मैं पावनता भी रखती हूँ l
मैं लिखूँ भला क्या कविता?
जब सागर भाव समाहित हूँ l
अब मौन भला क्या समझोगे,
जब शब्दों को ही न समझा l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर