रमजान उल मुबारक पर विशेष

 रमजान उल मुबारक पर विशेष



सुभान अल्लाह ,

आज शनिवार  2 अप्रैल को रमज़ान मुबारक का चांद नज़र आया । और चांद दिखने के साथ ही रमज़ान शरीफ के पाक महीने की शुरुआत हो गई। आज पहला रोज़ा है। 1 महीने तक चलने वाले इस पाक महीने के बाद मीठी ईद मनाई जाएगी जो अल्लाह पाक की तरफ से रोजेदारों को रोजे का तोहफ़ा होती है।

        इस पाक माह में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करना चाहिए। क्योंकि इस माह में किसी भी इबादत या नेकी  का 70 गुना सवाब मिलता है। रोज़ा  रखने का रिवाज़ हर मज़हब में है ,और सभी लोग अपने यक़ीदे (मान्यता) के हिसाब से रोज़ा रखते हैं।

दिन भर भूखा रहने का नाम रोज़ा  नहीं है रोज़ा पूरे जिस्म का होता है। आंखें गलत चीज़ ना देखें ,कान ग़लत बात ना सुने, ज़ुबान ग़लत ना कहे, इसी तरह से हांथ -पांव वग़ैरह का भी रोज़ा होता है।

भूखे को खाना, नंगे को कपड़ा, यानी हर ज़रूरतमंद की ज़रूरत पूरी करना रमज़ान माह में *रज़ा-ए-मौला* है।

        पिछले 2 सालों से हम लोग रमजान शरीफ में खुलकर खुशियां नहीं मना सके, कोई भी त्यौहार नहीं मना सके। अल्लाह का शुक्र है कि इस बार उसने पूरे हिंदुस्तान में दो त्यौहार एक साथ मनाने का मौक़ा दिया है। 2 अप्रैल से ही चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत हुई है हम सबको अपने अपने त्यौहार बड़ी ही मोहब्बत से एक दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए मिलजुल कर मनाना चाहिए।

     मस्जिदों में साफ-सफ़ाई  बिजली - पानी के इंतजाम जहां जो भी कमी है पूरे किए जा रहे हैं।आज पहली अफ़्तार होगी प्यारे नमाज़ी भाई , हर नमाज़ में इंसानों, इंसानियत और मुल्क की हिफ़ाज़त और सलामती की दुआ ज़रूर करेंगे ।

आमीन ,सुम्मा आमीन।

     इस्लाम में रोज़ा  रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई।मोहम्मद साहब के मक्के से हिजरत कर मदीना पहुंचने के 1 साल के बाद मुसलमानों को रोज़ा रखने का हुक्म आया । इस तरह से इस्लाम में रोज़ा रखने की बुनियाद पड़ी।

   रोज़ेदार सुबह सूरज निकलने से पहले सहरी करते हैं और उसमें जो भी चीजें जाएज़ और हलाल हैं खा पी सकते हैं। और फिर शाम को  मगरिब  (सूर्यास्त) की अज़ान के साथ ही रोज़ा ख़त्म किया जाता है। और रोजेदार खा पी सकता है ।

      सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान  रोज़ेदार कुछ भी खा -पी नहीं सकते। बस अल्लाह की इबादत क़ुरान -ए- पाक की तिलावत के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं।

   अल्लाह पाक का शुक्र है कि हम इस बार रोज़े और ईद का जश्न पूरी आज़ादी से आज़ादी की तरह मनाएंगे।

       *रोज़े  का असल मक़सद अपनी नफ़्स ( इंद्रियों) को क़ाबू में रखना है जो हमें ता उम्र( पूरी ज़िंदगी) करना चाहिए।*

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