सन्तों द्वारा बताए गए उपाय को न करने से परेशानी बनी रहती है
सतसंग लोगों को मिलना जरूरी है, सतसंग से सब जानकारी हो जाती है
सन्त उमाकान्त जी ने बताये घर में बरकत लाने के उपाय
उज्जैन (मध्य प्रदेश)।सन्त और सतसंग न मिलने और खान-पान, चाल-चलन खराब हो जाने से घर-घर, गांव-गांव व देश-देश में लड़ाई-झगड़ा, हिंसा-हत्या बहुत बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में लोगों को सच्चा सुख दिलाने का, तकलीफों से बचने-बचाने का तरीका बताकर सही मायने में लोगों को सुख-शांति दिलाने वाले इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 18 मार्च 2022, सायंकाल को उज्जैन आश्रम (म.प्र.) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि इस समय किसी की जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं है। पहले बाप के सामने लड़का मर जाए तो राजा से सवाल लोग करने लगते थे की तुमने कोई अत्याचार, अन्याय, अनहित किया होगा की अनहोनी हो गई। निश्चित था की सब लोग उम्र पूरी करके ही जाएंगे, बीच में नहीं। बचपना, जवानी फिर बुढ़ापा आती ही आती थी। लेकिन इस समय कोई गारंटी नहीं कि कोई घर से निकले और 2 घंटे के बाद ठीक-ठाक वापस आ जाएगा या रात को सोया है तो सवेरा देखेगा ही देखेगा। अब तमाम तरह की बीमारियां फैल गई। मामूली रोग अब असाध्य बन गए। लड़ाई-झगड़े, दुश्मनी, क़ौम-कौमियत की वजह से लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। जानवरों की तो फिर भी कीमत लगाते हैं लेकिन आदमी की कोई कीमत नहीं रह गई।
*हर सांस की कीमत लगानी चाहिए*
कैसे आप यह कह सकते हो कि अभी हमारी जवानी है फिर बुढ़ापा आएगा और जब समय पूरा होगा तब हम जाएंगे? जीवन का क्षण जो आपको जीने, खर्च करने के लिए मिला है इसकी कीमत आपको लगानी चाहिए।
*पहले लोग सतसंग में जाने का नियम बना रखे थे, उस हिसाब से करते थे तो उनको फायदा मिलता था*
पहले नियम बना रखे थे। लोग नियम से जाते, सतसंग सुनते और सतसंग के वचनों को याद कर लेते थे और जैसा बताया जाता था उस हिसाब से जब करते थे तो उनको फायदा मिलता था। आप बहुत लोग सुनते तो हो लेकिन भूल जाते हो।
*मतलब की बात सबको याद रखनी चाहिए*
जरूरी नहीं कि आध्यात्मिक सतसंग को ही सब लोग समझो। क्योंकि यह तो आध्यात्मिक स्कूल है। इसमें कोई पहले में है, कोई दूसरे, तीसरे, पांचवें दर्जा में है। पांच दर्जे की पढ़ाई अगर मास्टर पढ़ाते है तो एक-दो दर्जे में पढ़ने वाला उसको क्या समझेगा। लेकिन व्यवहार में आने वाली चीजों को हर कोई समझता है। जब उसे समझ कर बताये अनुसार घर में करता है और उसको फायदा होने लगता है तब (सतसंग में) आना-जाना शुरू कर देता है।
*कम खाओगे तो बीमारियों से और गम खाओगे यानी बर्दाश्त कर लोगे तो लड़ाई-झगड़ा, कोर्ट से बचे रहोगे*
तो व्यवहार की चीजें तो बहुत बताई जाती है। जैसे भूख से थोड़ा कम खाओ। कम खाओगे, जो मन मांगे उसको उस समय मत खाओ तो बीमारी नहीं आएगी। गम खाओगे, बर्दाश्त कर लोगे, गुस्से को पी जाओ तो लड़ाई-झगड़ा, मुकदमा, कोर्ट-कचहरी से बचोगे। एक को गुस्सा आवे तो दूसरा चुप हो जाए, भजन पर बैठ जाए तो झगड़ा टल जाएगा। आसान तरीका बता दिया गया।
*सतसंग की बातों को अमल में लाने से सुख-शांति बनी रहती है*
आप लोग एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हो और फिर हमसे तरह-तरह की शिकायत करते हो कि झगड़ा हो गया, नाराज होकर बहु चली गई, लड़का घर से भाग गया, कोई कुछ, कोई कुछ। तो इसीलिए सतसंग सुनाया और अच्छी बातें बताई जाती है कि अमल करो, जैसा बताया जाए वैसा करो। पहली बार जो आए हो उन्हें विश्वास कैसे होगा कि यह सही बात कह रहे हैं, ऐसा होता ही होता होगा। तो करके देख लेना। इस समय पर तो कोई घर ऐसा बाकी नहीं है जिसमें कुछ-कुछ लड़ाई-झगड़ा महीने में एक बार न हो जाए। कुछ घरों में तो रोज होता है। तो आप परीक्षा करके देख लेना।
*बरकत क्या है?*
ज्यादातर समस्या आजकल यही है तकलीफ शरीर से है, दि-दिमाग से है। दूसरा, कमाते बहुत हैं लेकिन बरकत नहीं मिलती। उपाय है कि मेहनत-ईमानदारी की ही कमाई करो। देखो कहीं हम झूठ बोल कर, बेईमानी, चोरी, ठगी करके, धोखा देकर तो नहीं ला रहे हैं। आ कैसे रहा है? दिल दुखा कर लाया हुआ कोई भी पैसा सुखदाई नहीं होता, शांति से नहीं बैठने देता, बच्चों का दिल-दिमाग, बुद्धि सही नहीं रखने देता है। जहां भी हराम का पैसा लगता है, वहां सत्यानाश ही होता है। इसीलिए कहा जाता है की हक और हलाल की कमाई करो। बरकत खास चीज होती है। रुपया पैसा बहुत दे दिया जाए लेकिन बचत न हो, कमी बराबर बनी रहे तो समझ लो कि बरकत हमारी छीनी हुई है।
*बरकत पाने के लिए क्या करना चाहिए*
बरकत पाने के लिए पहले मेहनत की कमाई में से कुछ अच्छे काम में लगा देते थे जैसे किसी को रोटी खिला दिया, पानी पिला दिया, कपड़ा दे दिया, दुखी है इलाज करा दिया, बहुत परेशान है, और है आपके पास तो उसको उस हिसाब से आपने मदद कर दिया। उससे क्या होता था? लेना-देना भी अदा होता था और बरकत भी मिलती थी।