"संगीत"
पिघल रही है ज़िन्दगी,
तपन से वक्त की।
जान कर अनजान हैं,
सो रहे हैं सभी ।
सोंचती अहर्निश,
काम है बहुत अभी।
बांध वक्त ने दिया,
ख़्वाब हैं सप्तरंगी ।
पर हवा है चल रही,
बेताब है ज़िन्दगी ।
बदल रहा है करवटें,
कल्पना-शिशु यहीं ।
मचल रही उमंग है,
तरंग भी है तैरती ।
भावना की धार है,
जि़न्दगी ये सार है।
स्नेह में मैं पल रही,
बन हवा मैं बह रही।
जी रही संगीत बन,
ख़्वाब को संजो रही।
रश्मि पाण्डेय
बिन्दकी फतेहपुर