"निजता"
तिर रहे हज़ारों स्वप्न नयन,
मन की अभिलाषाओं के संग ।
क्या बिना कहे मन पढ़ लोगे ?
मन विपदा को तुम हर लोगे ?
मन दौड़ रहा होकरके विकल,
'ह्रदय -सागर' गह्वरता मिल ।
तुम आ जाओ बन करके तरंग,
जीवन- नदिया में भर दो उमंग।
कुछ अकथ भाव ह्रदय तल के,
बन अश्रु नयन में भर करके।
क्या शब्द ह्रदय के समझोगे ?
मुस्कान अधर में भर दोगे?
स्त्रीत्व भाव की निजता को,
आह्लादित करके शुचिता को।
परिपूर्ण मेरे जीवन को कर,
क्या बिना कहे सब समझोगे?
जो छिपी है आकांक्षा मन में,
कहने की आतुरता संग में ।
बस एक बार भावों मे भर ,
ह्रदय से निज आलिंगन कर,
तुम साथ मुझे देकर प्रतिफल।
साकार स्वप्न को कर दोगे ?
तुम मेरे मान की वृद्धि बन ,
हर कार्यों की सिद्धि बन ।
जीवन के हर पड़ाव में मिल,
साकार स्वप्न तुम कर दोगे?
रश्मि पाण्डेय
बिन्दकी, फतेहपुर