विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...', फतेहपुर की जिला जेल में लिखा गया था झंडा गीत

 विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...', फतेहपुर की जिला जेल में लिखा गया था झंडा गीत



श्यामलाल गुप्त पार्षद को स्वतंत्र भारत ने सम्मान दिया और 1952 में लाल किले से उन्होंने अपना प्रसिद्ध ‘झंडा गीत’ विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा... गाया। 


1972 में लालकिले में उनका अभिनन्दन किया गया। 1973 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया गया।

 

फतेहपुर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झंडा गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पाए चाहे जान भले ही जाए' की रचना के लिए श्यामलाल गुप्त इतिहास में सदैव याद किए जाएंगे। यह गीत उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में आजादी के आंदोलन के दौरान लिखा गया था। इस गीत को लिखने वाले श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के दौरान श्यामलाल गुप्त पार्षद चोटी के राष्ट्रीय नेता मोतीलाल नेहरू, महादेव देसाई, रामनरेश त्रिपाठी और अन्य नेताओं के संपर्क में आए। स्वतंत्रता संघर्ष के साथ ही पार्षद का कविता रचना का कार्य भी चलता रहा।


पहली बार 1952 में लाल किले से गया था झंडा गीत


श्यामलाल गुप्त पार्षद को स्वतंत्र भारत ने सम्मान दिया और 1952 में लाल किले से उन्होंने अपना प्रसिद्ध ‘झंडा गीत’ विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा... गाया। 1972 में लालकिले में उनका अभिनन्दन किया गया। 1973 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया गया।

अंग्रेजों से आजादी तक नंगे पांव रहने का लिया था संकल्प

भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए श्यामलाल गुप्त पार्षद ने नंगे पांव रहने का संकल्प लिया था। उन्होंने 1921 में कहा था कि जब तक भारत को अंग्रेजों से आजादी नहीं मिल जाती, तब तक नंगे पांव रहूंगा।


एक रात में जेल के अंदर रहकर लिखा था झंडा गीत


श्यामलाल पार्षद की आजादी के प्रति दिवानगी देखकर अंग्रेज अधिकारी भी हैरान थे। उनके देश भक्ति गीतों की लेखनी इतनी ओज पूर्ण थी कि लोगों के पढ़ते ही आंदोलन खड़ा हो जाता था। उनकी ऐसी लेखनी की वजह से कई बार अंग्रेजों ने श्यामलाल गुप्त पार्षद को जेल में डाल दिया। इसी तरह श्यामलाल गुप्त पार्षद को अंग्रेजों ने फतेहपुर की जेल में डाल दिया। पार्षद को फतेहपुर जेल की बैरक नंबर नौ में बंद रखा गया था। वही पर पार्षद ने 3-4 मार्च 1924 को एक रात्रि में भारत प्रसिद्ध ‘झण्डा गीत’ की रचना की।

पहली बार फूलबाग कानपुर में गया था झंडा गीत

पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में 13 अप्रैल 1924 को ’जालियांवाला बाग दिवस’ पर फूलबाग कानपुर में सार्वजनिक रूप से झण्डा गीत का सर्वप्रथम सामूहिक गान हुआ। इसी दौरान जवाहर लाल नेहरू ने पार्षद के बारे में कहा था कि भले ही लोग पार्षद को नहीं जानते होंगे, लेकिन समूचा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से परिचित हैं।जिला कलेक्टर ने घोषित किया था दुर्दान्त क्रान्तिकारी

पार्षद 1916 से 1947 तक पूर्णतरू समर्पित कर्मठ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी रहे। गणेशजी की प्रेरणा से फतेहपुर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। इस दौरान ‘नमक आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रमुख संचालन व लगभग 19 वर्षों तक फतेहपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के दायित्व का निर्वाह भी पार्षद ने किया। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण पार्षद जी को रानी असोथर के महल से 21 अगस्त 1921 को गिरफ्तार किया गया। जिला कलेक्टर द्वारा उन्हें दुर्दान्त क्रान्तिकारी घोषित करके केन्द्रीय कारागार आगरा भेज दिया गया। इसके बाद 1924 में एक असामाजिक व्यक्ति पर व्यंग्य रचना के लिए पार्षद के ऊपर 500 रुपये का जुर्माना हुआ। 1930 में नमक आंदोलन के सिलसिले में फिर गिरफ्तार किया और कानपुर जेल में रखे गया। पार्षद सतत स्वतन्त्रता सेनानी रहे और 1932 और 1942 में फरार भी रहे। 1944 में पार्षद को फिर गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। इस तरह आठ बार में कुल छः वर्षों तक राजनैतिक बन्दी रहे।


नमो नमो गीत से भी पार्षद जी को मिली थी प्रसिद्धि

‘झण्डा गीत’ के अलावा एक और ध्वज गीत श्यामलाल गुप्त ’पार्षद’ ने लिखा था। इस गीत की भी विशेष चर्चा होती रही है। उस गीत की पहली पंक्ति है, राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति, राष्ट्रीय पताका नमो-नमो।

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