रामलीला देखने के लिए दर्शकों की उमड़ी भीड़
रामलीला देखने के लिए दर्शकों की उमड़ी भीड़ 

बाँदा - दुर्गा महोत्सव के अवसर पर कस्बे में चल रही 11दिवसीय श्री रामलीला के छठवें दिन उत्तर भारत के कलाकारों द्वारा दशरथ कैकेई संवाद, राम बनवास तथा राम केवट संवाद की लीला का मंचन किया गया। रामलीला देखने के लिए कस्बे सहित आस पास के गांवों के दर्शक भारी संख्या में जुटे रहे।
     रामलीला के छठवें दिन शुक्रवार को कलाकारों द्वारा दशरथ कैकेई संवाद का रोचक मंचन प्रस्तुत किया गया। रानी कैकेई प्रशासनिक नियम जानती थी। नियम के अनुसार त्रेता युग में यह नियम था कि यदि कोई राजा अपनी गद्दी 14 साल तक छोड़ देता है तो वह राजा बनने का अधिकार खो देता है। यही वजह रही कि कैकेई ने राम के लिए पूरे 14 वर्ष का बनवास मांगा। वन का सब साज-सामान सजा कर, वन के लिए आवश्यक वस्तुओं को साथ लेकर भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण सहित ब्राह्मण, गुरु के चरणों की वंदना करके सबको अचेत करके चले। श्री राम जी के चलते ही अयोध्या में बड़ा भारी विषाद हो गया। लंका में बुरे शकुन होने लगे, अयोध्या में अनंत शोक छा गया और देवलोक में सब हर्ष और विषाद दोनों के बस में हो गए। श्री रामचंद्र जी को जाते हुए और अयोध्या को अनाथ देखकर सब लोग व्याकुल होकर उनके साथ हो लिए। सरयू किनारे विश्राम करने के पश्चात कृपा के सागर श्री राम के द्वारा अयोध्यावासियों को बहुत प्रकार से समझाने पर वे सभी प्रेमवश होकर लौट आते हैं। श्री रामचंद्र जी सुमंत जी को जबरदस्ती लौटाकर माता सीता और भ्राता लक्ष्मण सहित गंगा के किनारे पहुंचे और केवट से नाव मांगी पर वह लाता नहीं। "मांगी नाव न केवट आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।"चरण कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई ।।"वह कहने लगा मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया है। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। किसके छूते ही पत्थर की शिला सुंदर स्त्री हो गई। मेरी नाव तो काठ की है, काठ पत्थर से कठोर तो होता नहीं। मेरी नाव भी मुनि की स्त्री हो जाएगी। मैं लुट जाऊंगा, मेरी रोजी रोटी जाएगी। मैं अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करूंगा। हे प्रभु यदि आप पार जाना चाहते हैं तो आपके चरण कमल पखारने पड़ेंगे। आपकी आज्ञा हो तो मैं आपके चरण कमल धो कर आपको नाव पर चढ़ा सकता हूं। मैं आपसे उतराई नहीं चाहता। लक्ष्मण भले ही मुझे तीर मारे लेकिन जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूंगा तब तक पार नहीं उतार सकता। तब कृपा के सागर श्री राम केवट से मुस्कुराकर बोल भाई तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाय। शीघ्रता करो और पानी लाकर पैर धोलो और हमें शीघ्र पार करो। केवट श्री रामचंद्र जी की आज्ञा पाकर कठौते में जल भर लाया और अत्यंत प्रेम तथा उमंग के साथ भगवान के कमल कमल धोने लगा। यह दृश्य देख कर सभी देवताओं ने फूल बरसाए। केवट आनंद पूर्वक श्री रामचंद्र जी को गंगा जी के पार ले गया। निषादराज और लक्ष्मण जी सहित श्री सीता माता और श्री राम जी उतर कर गंगा जी की रेट में खड़े हो गए। उसी समय केवट के दंडवत प्रणाम करने पर प्रभु श्री राम को संकोच हुआ कि इसको कुछ दिया नहीं। पति के मन की बात जानने वाली सीता जी ने आनंद भरे मन से अपनी अंगूठी अंगुली से उतारी। कृपालु श्री रामचंद्र जी ने केवट से कहा नाव की उतराई लो, केवट ने व्याकुल होकर चरण पकड़ लिए।"नाथ आज मैं काह न पावा। मिटे दोष दुःख दारिद दावा।।,बहुत काल मै कीन्हि मजूरी। आजु दीन्ह विधि बनि भलि भूरी।।"आपकी कृपा से मुझे कुछ नहीं चाहिए, लौटती बार आप जो कुछ देंगे वह प्रसाद मैं स्वीकार करूंगा।
    कमेटी प्रबंधक आनंद स्वरूप द्विवेदी, अध्यक्ष अनिल कुमार लाखेरा, महामंत्री अरविंद कुमार गुप्ता, सचेतक हरवंश श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष नमन गुप्ता, धीरज गुप्ता, देवा सिंह, अखिलेश गुप्ता, शोभित द्विवेदी आदि ने व्यवस्था संभाली।
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