संसदीय चुनाव: इतिहास के पन्नों से

 संसदीय चुनाव: इतिहास के पन्नों से



फ़तेहपुर सीट पर किसी की नहीं लगी हैट्रिक, क्या साध्वी तोड़ पायेंगी मिथक


संतबख़्श सिंह, हरीकृष्ण शास्त्री, वीपी सिंह, अशोक पटेल एवं साध्वी निरंजन ज्योति के नाम दर्ज़ है लगातार दो बार सांसदी


इस सीट से वीपी सिंह जीतकर बनें थे पीएम, शास्त्री व साध्वी बनीं केंद्रीय मन्त्री


सोनेलाल पटेल, उदित राज़ भी आज़मा चुके हैं भाग्य


सर्वाधिक 05 बार कांग्रेस, 04 बार भाजपा, 02-02 बार जनता दल और बसपा, 01 बार सपा, जनता पार्टी, लोकदल और निर्दलीय बना सांसद

               

फ़तेहपुर। लगभग साढ़े सात दशक के संसदीय इतिहास में “फ़तेहपुर लोकसभा सीट” पर किसी भी सियासी उम्मीदवार की जीत की हैट्रिक नहीं लग पाई। संतबख़्श सिंह, हरीकृष्ण शास्त्री, विश्वनाथ प्रताप सिंह, डा. अशोक पटेल एवं साध्वी निरंजन ज्योति लगातार दो बार सांसद बनीं हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह अकेले ऐसे सांसद रहे जिन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल को बीच में ही छोड़ (इस्तीफ़ा) दिया था। क्योंकि साध्वी को पार्टी ने तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है, इसलिए उनके प्रदर्शन पर नज़र होगी। वहीं अन्य को संबंधित पार्टियों ने तीसरी बार प्रत्याशी तो बनाया किन्तु वह जीत नहीं पाये या यूँ कहें कि मतदाताओं ने नकार दिया…! वैसे इतिहास तो यहीं कहता है कि ज़्यादातर मौक़ों पर यहां के जनमानस का निर्णय परिवर्तनशील रहा है।

उल्लेखनीय है कि आज़ादी के बाद से अब तक हुए संसदीय चुनावों में फ़तेहपुर लोकसभा सीट पर सर्वाधिक 05 बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सफलता मिली है। 04 बार भाजपा ने विजय हासिल की जबकि 02-02 बार जनता दल और बहुजन समाज पार्टी सफल रही हैं। समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी, लोकदल और निर्दलीय को 01-01 बार लोकसभा पहुँचने का अवसर मिला। 1989 में इस सीट से जनता दल प्रत्याशी विश्वनाथ प्रताप सिंह जीत हासिल कर देश के प्रधानमन्त्री बनें थे। इसके अलावा 1984 में यहाँ से दूसरी बार सांसद बनें हरीकृष्ण शास्त्री एवं  2014 व 2019 में यहाँ से सांसद बनीं साध्वी निरंजन ज्योति केन्द्र सरकार में बतौर राज्यमन्त्री शामिल हुईं।

फ़तेहपुर सीट पर विधायक रहते सै. लियाक़त हुसैन, विश्वंभर प्रसाद निषाद, महेन्द्र प्रताप नारायण सिंह, राधेश्याम गुप्ता एवं निरंजन ज्योति ने लोकसभा चुनाव लड़ा किन्तु जीत सिर्फ़ विश्वंभर और निरंजन ज्योति को ही नसीब हुईं। 1962 के संसदीय चुनाव में चला ज़िला वाद का नारा इस कदर प्रभावी हुआ कि निर्दलीय गौरी शंकर कक्कड़ जीतकर लोकसभा पहुँच गये। वहीं 1977 के संसदीय चुनाव में सांसद बनें बशीर अहमद के आकस्मिक निधन से 1978 में एक मात्र बार इस सीट पर उपचुनाव हुआ और इंदिरा गांधी के एक हफ़्ते तक यहाँ रहने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी पं. प्रेमदत्त तिवारी चुनाव हार गये और लोकदल के सै. लियाक़त हुसैन सांसद बनें।

 इस सीट पर प्रायः बाहरी उम्मीदवारों को जीत हासिल होती रही हैं। गौरी शंकर कक्कड़, सै. लियाक़त हुसैन और डा. अशोक पटेल का अलावा यहाँ से सांसद बनें अंसार हरवानी, संतबख़्श सिंह, बशीर अहमद, हरीकृष्ण शास्त्री, विश्वनाथ प्रताप सिंह, विश्वंभर प्रसाद निषाद, महेन्द्र निषाद, राकेश सचान से लेकर साध्वी निरंजन ज्योति आदि बाहरी प्रत्याशी थे, जो यहाँ की संसदीय राजनीति में काफ़ी सफल रहें।

 इस सीट पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार 1991 में डा. विजय सचान को प्रत्याशी बनाया जो दूसरे स्थान पर रहें। उसके बाद तत्कालीन विधायक महेंद्र प्रताप नारायण सिंह, अशोक पटेल (तीन बार), राधेश्याम गुप्ता और साध्वी निरंजन ज्योति तीसरी बार यहाँ से चुनाव लड़ेंगी। इसी तरह कांग्रेस ने अंसार हरवानी, सन्तबख़्श सिंह, हरीकृष्ण शास्त्री, राम प्यारे पांडेय, विभाकर शास्त्री, ख़ान गुफ़रान ज़ाहिदी, ऊषा मौर्या, राकेश सचान को प्रत्याशी बनाया। बसपा ने यहाँ से विश्वंभर प्रसाद निषाद, महेन्द्र निषाद, अफ़ज़ल सिद्दीक़ी, सुखदेव वर्मा को चुनाव लड़ा चुकी है। समाजवादी पार्टी इस सीट से देवेन्द्र प्रताप सिंह गौतम, अचल सिंह, विश्वंभर प्रसाद निषाद, राकेश सचान को चुनाव लड़ा चुकी है। पिछले चुनाव में सपा ने यह सीट बसपा के लिए छोड़ी थी।

फ़तेहपुर लोकसभा सीट पर किसी भी पार्टी के उम्मीदवार की जीत की हैट्रिक नहीं लग पाई। संतबख़्श सिंह, हरीकृष्ण शास्त्री, विश्वनाथ प्रताप सिंह, डा. अशोक पटेल एवं साध्वी निरंजन ज्योति लगातार दो बार सांसद बन चुकी हैं। देखने वाली बात यह होगी कि क्या साध्वी पुराना मिथक तोड़कर जीत की हैट्रिक लगा पाती हैं या फिर हैट्रिक का इंतज़ार आगे भी बना रहता हैं।

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