विश्व पर्यावरण बचाने के साथ साथ बचपन बचाने का लिया
विश्व पर्यावरण बचाने के साथ साथ बचपन बचाने का लिया संकल्प

फतेहपुर।नीति आयोग के सहयोग से पिछले 2 वर्षों से आकांक्षी जनपद फतेहपुर में मानसिक विकास लिए अनुपयोगी प्लास्टिक बोतलों से बन रही सेंसरी बोतलों  व झुनझुने (खिलौने) खेल के माध्यम से बच्चों को सीखने में मदद कर रहे हैं साथ ही पर्यावरण को  बचाने की सीख भी दे रहे हैं  -  *डॉ. दीपक संखवार शिशु एवं बाल  रोग विशेषज्ञ , सहायक आचार्य मेडिकल कालेज फतेहपुर*
*फतेहपुर* - छोटी-छोटी उंगलियाँ खड़खड़ाहट के इर्द-गिर्द लिपटी हुई हैं... छोटा हाथ बेतरतीब तरंगें और हरकतें कर रहा है जिससे खड़खड़ाहट बज रही है... अचानक आवाज़ सुनकर छोटी-छोटी उत्सुक आँखें चौड़ी हो जाती  हैं... छोटे-छोटे कान आवाज़ के स्रोत का पता लगाने की कोशिश करते हैं... और इस दौरान, वह छोटा-सा मुँह एक बड़ी मुस्कान में बदलने लगता है   क्योंकि बच्चा अपने नए खिलौने के साथ खेलना सीख रहा है! खड़खड़ाहट वाकई बच्चों के लिए सबसे प्यारे खिलौने हैं। शुरुआत से ही, झुनझुने ऐसे बेहतरीन खिलौने साबित होते हैं जो सभी बच्चों को पसंद आते हैं। वे उन्हें काफी समय तक व्यस्त और मनोरंजित रखते हैं और बच्चे को कुछ समय के लिए खुद से खेलने देने का एक शानदार तरीका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि झुनझुने से आपके बच्चे के विकास में कई लाभ होते है I
   कबाड़ से जुगाड़ के ढेरों उदाहरण आज वैकल्पिक संसाधनों के रूप में लोगो  को न केवल नवाचार करने की सीख  दे रहे हैं I बल्कि संसाधनों की कमी होने के बाद भी साधन विहीन लोगो को संसाधन युक्त जीवन बनाने में मदद भी करते हैं।  इसी सोच के साथ वैन लीर  फाउंडेशन एवं विक्रमशिला एज्युकेशन रिसोर्स सोसायटी की  टीम पिछले दो वर्षों से घर पर  पड़ी प्लास्टिक बोतलों  से छोटे बच्चों के लिए झुनझुने एवं संवेदी (सेंसरी) बोतलें बनाने का कार्य कर रही है।   
बचपन के पहले दो  साल बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। यह समय भविष्य के स्वास्थ्य, बढ़त और विकास की बुनियाद होती है। दूसरे किसी भी समय के मुकाबले इस दौरान बच्चे तेजी से सीखते हैं। शिशु और बच्चे तब और जल्दी विकसित और कहीं ज्यादा तेजी से सीखते हैं, जब उन्हें प्यार और लगाव, ध्यान, बढ़ावा और मानसिक उत्तेजना के साथ ही पोषक भोजन और स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल मिलती है।
* धीमी माध्यम संगीतमय खड़खड़ाहट आपके बच्चे के विकास में कैसे मदद करती है?*
झुनझुने (रैटल) शिशुओं को अपनी स्पर्श इन्द्रिय का पता लगाने का मौका देते हैं, क्योंकि वे उन्हें पकड़ते हैं, महसूस करते हैं और उनके साथ खेलते हैं।
खड़खड़ाहट से उत्पन्न विभिन्न ध्वनियाँ शिशु की श्रवण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती हैं।
विभिन्न पैटर्न, रंग और डिजाइन वाले झुनझुने बच्चे की रंग पहचान को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
ये रोमांचक और आकर्षक खिलौने हैं, जो बच्चे को लंबे समय तक खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
खड़खड़ाहटें विभिन्न प्रकार के पकड़ने के कौशल को प्रोत्साहित करके बच्चे के सूक्ष्म मोटर कौशल पर काम करती हैं ।
वे शिशु का ध्यान आकर्षित करते हैं और उसे बनाए रखते हैं, जिससे उनके संज्ञानात्मक विकास में सुधार होता है।
बच्चे देखते हैं कि जैसे ही वे अपने हाथ हिलाते हैं, खड़खड़ाहट की आवाज आती है, और वे कारण और प्रभाव की अवधारणा को समझने लगते हैं।
खड़खड़ाहट से बच्चों को अपनी जिज्ञासा प्रकट करने का मौका मिलता है।
वे बच्चे के हाथ-आँख समन्वय में सुधार करते हैं।
बच्चे झुनझुने से खेलते समय स्वर, लय, धुन और मात्रा के बारे में सीखते हैं ।
*क्या हैं इनका कहना* -  
"दो महीने की उम्र में,  शिशु अपने दृश्य फोकस को समायोजित करना  सीख रहा  होता है। इस अवस्था में, उन्हें एक ऐसे खड़खड़ाने - *(धीमी मध्यम संगीतमय आवाज)* से खेलने में मज़ा आएगा जिसकी आवाज़ अलग हो और साथ ही आकर्षक भी हो। किसी आकर्षक खिलौने  का खड़खड़ाना बिल्कुल वैसा ही है ! शिशु झुनझुने  के साथ खेलना और उसके रूप को देखना पसंद करेगा, साथ ही झुनझुने पकड़ने  वाली अंगूठी की दोहरी बनावट को भी देखेगा। यह इस अवस्था के लिए सबसे उपयुक्त खड़खड़ाना है जब बच्चे का पामर ग्रैस्प रिफ्लेक्स विकसित हो रहा होता है।” (पामर ग्रैस्प रिफ्लेक्स एक आदिम और अनैच्छिक रिफ्लेक्स है जो मनुष्यों और अधिकांश शिशुओं में पाया जाता है। जब कोई वस्तु, जैसे कि वयस्क उंगली, शिशु की हथेली में रखी जाती है, तो शिशु की उंगलियां वस्तु को सजगता से पकड़ लेती हैं।),  इस प्रकार के खिलौनों को आम तौर पर बच्चे चाटने व खाने की भी कोशिश करते है इसलिए इन खिलौनों का प्रतिदिन साफ़ किया जाना भी अत्यंत आवश्यक  होता है ।डॉ. दीपक संखवार शिशु एवं बाल  रोग विशेषज्ञ , सहायक आचार्य मेडिकल कालेज
"जब  बच्चा चार महीने का हो जाता है, तो उसकी श्रवण इंद्रियाँ विकसित होने लगती हैं। आपका बच्चा आवाज़ के स्रोत की दिशा का अंदाजा लगाने में सक्षम हो जाता  है  और  वह आवाज़ की दिशा में अपना सिर भी मोड़ सकेगा। यह एक ऐसा धीमी माध्यम संगीतमय  खड़खड़ाहट लाने का एक बढ़िया समय है जिससे उसे प्यार हो जाएगा। इस अवस्था में बच्चे  हर दिन अपनी आँख-शरीर के समन्वय में भी सुधार कर रहे होते हैं। इसलिए जब आप उनके पास झुनझुने  पकड़ते हैं और उसे बजाते हैं, तो वे इसकी ओर आकर्षित होंगे और उसे पकड़ने की कोशिश करेंगे। वे पल भर में पकड़ने के अपने नए-नए कौशल से आपको आश्चर्यचकित भी कर देंगे। फतेहपुर जनपद के समस्त परिषदीय विद्यालय जंहा पर आँगनबाड़ी केंद्र स्थित हैं इस तरीके से बड़े पैमाने पर खिलौनों के निर्माण में मदद कर सकते है उन घरों में जंहा शून्य से दो वर्ष के बच्चे रहते है, इससे कर प्रारंभिक बाल्यावस्था में  बच्चों के मानसिक विकास में मदद मिलती है , साथ ही आँगनबाड़ी केंद्रों में संवेदी कोनो का निर्माण भी अत्यंत लाभकारी होगा।डॉ. रघुनाथ सिंह , शिशु एवं बाल  रोग विशेषज्ञ, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी जिला पोषण पुनर्वास केंद्र जीवन के प्रथम 1000 दिवस परियोजना की राज्य समन्वयक साक्षी पावर ने कहा की पर्यावरण दिवस संपूर्ण विश्व के लोगों को पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरूक करता है। यह दिवस हमें पर्यावरण के प्रति हमारे कर्तव्यों, जिम्मेदारियों को याद दिलाकर हमें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए अभिप्रेरित करता है। इस अवसर पर उन्होंने हाई टच आँगनबाड़ी केंद्र कार्यकत्रियों को पौधे भेंट कर समुदाय को पर्यवरण की रक्षा करने की  संकल्प शपथ  भी दिलवाई ।  साथ ही वैन लीर फाउंडेशन के जिला कार्यक्रम समन्वयक ने यूज्ड प्लास्टिक बोतलों से बने सेंसरी खिलौने व झुनझुने आँगनबाड़ी कार्यकत्रीयों को भेंट कर केंद्र के अंतर्गत परवरिश के आँगन कार्यक्रम के अंतर्गत समस्त माता पिता को खिलौने बनाने के प्रशिक्षण देने हेतु आग्रह किया।  
इस अवसर पर जीवन के प्रथम 1000 दिवस परियोजना की समस्त हाई टच आँगनबाड़ी केंद्रों में पौधा रोपण भी किया गया I  कार्यक्रम के दौरान परियोजना टीम के विषय विशेषज्ञ प्रारंभिक बाल्य विकास आर्यन कुशवाहा ,विषय विशेषज्ञ पोषण सोनल रूबी  राय , परियोजना अधिकारी प्रशांत पंकज एवं अनामिका पांडेय उपस्थित रहे , कार्यक्रम के दौरान अनुभव गर्ग द्वारा बताया गया की  हमारे जीवन का सबसे प्यारा सहारा पर्यावरण है। इसके संरक्षण हेतु हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने होंगे।  पर्यावरण की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना होगा । प्राकृतिक संसाधनो का सही तरीके से इस्तेमाल करना होगा। सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग दैनिक जीवन में बंद करना होगा। सिंगल यूज प्लास्टिक के स्थान पर ऐसे पदार्थो का उपयोग करना होगा जोकि बड़ी आसानी से पर्यावरण में रीसाइकिल हो जाए।
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